अन्तर्राज्य परिषद्: भारतीय संघीय ढांचे का महत्वपूर्ण अंग। Inter-State Council: An important part of
भारतीय संविधान ने संघीय ढांचे के तहत केन्द्र और राज्यों के बीच समन्वय को सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान स्थापित किए हैं। इन्हीं प्रावधानों में से एक महत्वपूर्ण संस्थान है अन्तर्राज्य परिषद्, जिसकी स्थापना संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत की जाती है।
स्थापना और इतिहास
अन्तर्राज्य परिषद् का गठन पहली बार जून 1990 में किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य केन्द्र और राज्यों के बीच बेहतर समन्वय और संवाद स्थापित करना था ताकि संघीय ढांचे को मजबूत बनाया जा सके।
इस परिषद की पहली बैठक 10 अक्टूबर, 1990 को आयोजित की गई थी। इसके गठन से पहले, केन्द्र-राज्य संबंधों में बेहतर समन्वय के लिए इस तरह की संस्था का अभाव महसूस किया जाता था।
अन्तर्राज्य परिषद् के सदस्य
अन्तर्राज्य परिषद् में निम्न सदस्य शामिल होते हैं:
प्रधानमंत्री (परिषद् के अध्यक्ष)।
प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत छह कैबिनेट स्तर के मंत्री।
सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री।
केन्द्र शासित प्रदेशों के प्रशासक।
इस प्रकार, परिषद् में उच्च स्तर पर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाता है ताकि केन्द्र और राज्य दोनों पक्षों के विचारों का आदान-प्रदान सुचारु रूप से हो सके।
अन्तर्राज्य परिषद् की बैठकों का प्रावधान :
परिषद् की बैठक वर्ष में तीन बार आयोजित की जाती है। इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं, और उनकी अनुपस्थिति में प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त कोई कैबिनेट स्तर का मंत्री इस कार्य का निर्वहन करता है।
बैठक में कोई भी निर्णय लेने के लिए यह आवश्यक है कि कम-से-कम दस सदस्य अवश्य उपस्थित हों।
भूमिका और महत्व :
अन्तर्राज्य परिषद् का उद्देश्य सिर्फ चर्चा और संवाद करना ही नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा मंच है जहाँ विभिन्न मुद्दों पर सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया जाता है। यह केन्द्र और राज्यों के बीच विवादों के समाधान, नीतिगत समन्वय और पारस्परिक सहयोग को सुनिश्चित करने का कार्य करता है।
इस मंच के माध्यम से केन्द्र और राज्य सरकारें अपने-अपने विचारों को सामने रखती हैं और निर्णय लेने में भागीदारी सुनिश्चित करती हैं।
संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत स्थापित अन्तर्राज्य परिषद्, भारतीय संघीय ढांचे को संतुलित और समन्वित बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण साधन है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच संवाद और सहयोग की भावना बनी रहे, जिससे देश के विकास और प्रगति की दिशा में सामूहिक प्रयास किए जा सकें।
इस प्रकार, अन्तर्राज्य परिषद् भारतीय शासन प्रणाली के संघीय ताने-बाने को मजबूती प्रदान करने का कार्य करती है, जो लोकतांत्रिक और विकेन्द्रीकृत शासन की भावना के अनुरूप है।।